अगर मैं शिक्षा अधिकारी बनता तो – विद्यार्थियों के लिए ये नियम बनाना चाहूँगी
ईश्वर द्वारा रचित सृष्टि की सभी रचनाओं में मनुष्य सर्वश्रेष्ट है| विद्यार्थियों के जीवन -काल स्वर्ण काल है| जिस प्रकार सोने को पिघलकर तरह- तरह के आभूषण बनाते हैं, उसी प्रकार छात्रों को अच्छे रास्ते पर लाना, उनके जीवन को सुन्दर और चरित्रवान बनाना ज़रूरी है| माता, पिता, गुरू का कर्तव्य यही है| मैं शिक्षा -अधिकारी बनना पसंद करती हूँ| शिक्षा का महत्व अमूल्य है| मनुष्य जाति के लिए वरदान है शिक्षा| धन – संपति जितने भी हो शिक्षा के बिना सब व्यर्थ है| यदि मैं शिक्षा-अधिकारी होती, तो स्वयं को नीम के वृक्ष की भाँति विकसित करती | यदि मैं शिक्षा अधिकारी बनती तो सबसे पहला काम यह करती कि विद्यार्थियों में आत्मविश्वास, संयम अनुशासन सब में परिवर्तन लाऊँगी| पहला नियम
- विद्यालयों के समय में बदलाव|
- पुस्तकों का भार कम कर दूँगी|
- विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में परिवर्तन लाऊँगी|
- आजकल के विद्यार्थी मोबाइल, कंप्यूटर आदि के गुलाम बन गए हैं | उसे रोकने का प्रयास करूँगी |
अतं में, मैं केवल इतना ही कहना चाहूँगी कि यदि मैं अपने जीवन में कभी शिक्षा-अधिकारी बन सकी, तो अपने कहे को सच करके दिखा दूँगी|
Manjushri B. VIII C