प्रतिदिन, जब भी हम किसी अनजान या बूढ़े आदमी को देखकर मुसकराते हैं, तो हम जानते नहीं कि इस सरल कार्य से हम उनका दिन कितना खुशी से भर देते हैं।यदि धरती के अस्सी करोड़ लोगों में से प्रत्येक आदमी यह करता तो शायद दुनिया में दु:खी के लिए जगह ही न रहता। आतंकवाद इस खुशी का सबसे बड़ा दुश्मन है। आतंगवाद के कारण हज़ारों लोगों का देहांत हो जाता है। आतंकवाद ही नहीं, गाली देना आदि भी दुनिया की उदासी को बढ़ा देती है। इसमें शायद हमारा बहुत कम भाग होगा परंतु यदि हम खुशी फैलाए तो हम भी खुशी रहेंगे और दूसरों को भी और तभी हम सच में जीवन जीएँगे।
आनंद एस.
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मेरे ख्याल से हर व्यक्ति को ‘जियो और जीने दो’ – इस उक्ति को अपनाना चाहिए और इसे काम में लाना चाहिए। केवल हमें नहीं हर प्राणी को जीने का अधिकार होता है इसमें पशु- पक्षी और मनुष्य भी शामिल हैं।
हम सब मिट्टी से ही बने हैं और मृत्यु होने के बाद मिट्टी होकर एक दूसरे में मिल जाएँगे तो आपसी भेद- भाव नहीं होना चाहिए। अगर खुद खुशी नहीं रहना चाहते तो कम से कम दूसरों को खुशी रहने दे सकते हैं। हर एक का अपना- अपना भाव होता है और उन्हें सम्मान देना चाहिए।
श्रिया गोयल
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