हास्य कविता – विज्ञापन
कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है |
यार ये विज्ञापन हमें इतना क्यों लुभाते हैं?
छोटा सा विज्ञापन कुछ ऐसा चककर चलाता है|
कि बडे से बड़े ज्ञानी भी इसके चककर में फँसकर,
क्षण में ही समझो जैसे घनचक्कर बन जाता है|
पर अगले ही पल इस पगले मन में विचार आता है|
कि यार इन विज्ञापन का सच्चाई से क्या नाता है |
फ़्येर एंड लवली कहती है दो हफ्तों में अपना रंग गोरा बनाइए|
मैं कहती हूँ दो साल देती रजनिकांत को गोरा करके दिखाइए |
सोना बेल्ट लाइए 25 दिन में अपना वजन 30 किलो तक घटाइए|
पहले प्रभू को विक्रम प्रभू बनाकर दिखाइए |
विज्ञापन कहता है एक्स इफेक्ट लगाइए चाहे जिसे पटाइए|
मैं कहती हूँ इसका जादू कभी रामदेव बाबा पर भी चलाइए|
बच्चन से लेकर तेंदुलकर तक सभी टी वी विज्ञापन में आते हैं|
कुछ बच्चों को चाक्लेट तो कुछ युवाओं को पेप्सी पिलवाते हैं|
और कुछ 2 मिनट के विज्ञापन से करोड़ों की दौलत कमाते हैं|
कम्पनी वाले इनसे अपना घटिया माल बढ़िया दाम में बिकाते हैं|
फिर भी ये विज्ञापन आम आदमी को इतना क्यों लुभाते हैं|
जिसे देखकर बड़े-बड़े बुद्धिजीवी भी घनचक्कर बन, जाते हैं|
Kushi D.J.VIII D
